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Monday, December 14, 2009

शिक्षा का मतलब सिर्फ नौकरी नहीं

देश के युवा वर्ग के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। इन लकीरों में छिपा है, रोजगार की कमी व अनगिनत डिग्रियां उठाकर दर-दर भटकने का दर्द। जो हर कदम पर हमारे ऊर्जावान युवाओं को हताश कर रहा है। यह हताशा दोगुनी हो जाती है जब हम आजादी के बाद के उन 62 वर्षों के लम्बे सफर की तरफ देखते हैं। उन लम्हों को याद करके पीड़ा होती है कि भगत सिंह, सुखदेव, उद्यम सिंह आदि वीरों ने स्वयं को न्यौछावर कर दिया ताकि आने वाली पीढ़ियां अपने सपनों को पूरा कर सके। मगर समय के साथ हमने उन शहीदों को भुला दिया। आज हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि युवा हताश होकर गलत रास्ते अपना रहे हैं। नशे की लत, ठगी, चोरी व आतंकवाद की तरफ उनका आकर्षण बढ़ता जा रहा है। सरकार की नीतियों में कमी है या हमारा शिक्षातंत्र लाचार है, ये बात अभी तक समक्ष से परे है। अगर विशेषज्ञों की मानें तो रोजगारोन्मुखी शिक्षा को बढ़ावा देकर प्रत्येक नौजवान को रोजगार मुहैया करवाया जा सकता है। यदि उन्हें रोजगार मिलेगा उनके जीवन में व्यस्तता आएगी और उनका ध्यान इन वयस्नों से हटेगा। यह तथ्य कुछ हद तक तो सही है, परन्तु ऐसे बहुत से विषयों पर प्रश्नचिन्ह लगाता है जो ज्ञान से जुड़े है। हमें वर्तमान समय की चाल को देखना होगा कि वास्तव में जमीनी हकीकत क्या है। हमें देखना होगा कि जो स्नात्तक विश्वविद्यालयों से निकल रहे हैं क्या वह रोजगार पाने के लायक हैं भी या नहीं? क्या वह उद्योग जगत की चाह के अनुरूप हैं ? क्योंकि प्रायः यह देखा जाता है कि आज के युवा केवल मस्ती कर के अपना शिक्षण जीवन व्यर्थ कर देते हैं, मेहनत करने से वे कतराते हैं। वे गुणात्मक शिक्षा की बजाए गणनात्मक शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे में डिग्री संपूर्ण करने उपरांत जब वे भविष्य की तलाश में कर्मभूमि में कूदते हैं तो उन्हें मुंह की खानी पड़ती है। बचपन से ही उनके दिमाग में यह बात बिठा दी जाती है कि शिक्षा प्राप्त कर के नौकरी हासिल की जा सकती है। वर्तमान समय में बढ़ रही प्रतियोगिता का सामना करने के लिए उसे किसी भी तरह के हथकंडे अपनाकर अधिक से अधिक अंक प्राप्त करने होंगे। इसी के चलते उनके मन में यह चिन्हित हो जाता है कि शिक्षा प्राप्ति का उद्देश्य केवल नौकरी ही है। वह नौकरी के अलावा दूसरे विकल्पों की तरफ देखने तो क्या उनके बारे में सोचना भी नहीं चाहते। इसमें उसके परिवार व शिक्षकों की गलती सबसे अधिक है। समय के महत्व को समक्षते हुए हमें अपने बच्चों पर फैसले थोपने की बजाए उनकी रूचि का भी ध्यान रखना चाहिए। वहीं उन्हें यह भी समक्षाना चाहिए कि नौकरी के अलावा भी ऐसे कई क्षेत्र है जिनमें वे अच्छी प्रतिष्ठा बना सकते हैं। उससे जहां उनके व्यक्तिगत जीवन को लाभ होगा वहीं समाज व देश का चेहरा भी बदलेगा।

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