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Tuesday, November 4, 2008

महान ग्रन्थ है गुरु ग्रन्थ साहिब



सचखंड
साहिब श्री हज़ूर साहिब महाराष्ट्र में इस हफ्ते लाखों का जनसैलाब इकट्ठा हुआ। श्री गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु की गद्दी पर बिराजे 300 साल हो गए। दरअसल यह दुनिया का ऐसा अनोखा धर्म ग्रंथ है, जिसे गुरु की पदवी दी गई है। पिछले 300 साल में इसकी पहुंच सिखों में ही नहीं, बाकी मज़हबों के लोगों में भी बढ़ी है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब को समूची मानव जाति का साझा ग्रंथ कहा जाता है, जिसे पढ़ने का अधिकार सभी धर्मों और जातियों के लोगों को हासिल है।
संत कबीर जुलाहा थे, नामदेव कपड़ों पर छपाई का काम करते थे, संत रविदास जूता सीते थे, त्रिलोचन एक ब्राह्मण थे, धन्ना खेतिहर थे, सूरदास अंधे थे, जयदेव हिन्दी कवि थे, बाबा शेख फरीद बड़े सूफी संत रहे हैं, जिनकी शान आज भी उसी तरह बरकरार है... अपने ज़माने के सारे नामी संतों और विचारकों की वाणी को गुरु ग्रंथ साहिब में तरजीह दी गई। यही एक वजह है कि इस ग्रंथ को लाखों गैर सिख भी उतनी ही श्रद्धा के साथ पलक-पांवड़ों पर बिठाते हैं।
ज़ाहिर है, गुरु ग्रंथ साहिब के सामने नतमस्तक होने के लिए आपका सिख होना ज़रूरी नहीं... आप अगर इस महान ग्रंथ के सामने मत्था टेकते हैं तो आप पूरे हिन्दुस्तान की साझी विरासत, साझी सोच को नमन करते हैं, जिसमें 30 संतों और 10 गुरुओं की वाणी का सार समाहित है। सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें किसी गुरु की महिमा का बखान नहीं है, बल्कि ईश्वर के नाम का सिमरन करने, सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों को कायम रखने और जनसेवा करने का संदेश है।
गुरुद्वारे में जो शबद पाठ हम सुनते हैं, वह इतना सुरमयी इसलिए है, क्योंकि यह पूरी तरह से हिन्दुस्तानी संगीत के अलग-अलग सुरों में ढला हुआ है, और हरेक वेला के हिसाब से श्लोक पाठ भी होता है, जो पूरी तरह तय होता है। आध्यात्मिक दर्शन के अलावा सामाजिक परिदृश्य में भी गुरु ग्रंथ साहिब ऐसी रोशनी का काम करता है, जिसकी मिसाल बहुत कम देखने को मिलती है। आज सरबत का भला कोई नहीं सोचता, कोई भला कैसे किसी दीन-हीन को देखकर आंखें फेर सकता है।
"पर का बुरा ना राखउ चीत,"तुम कउ दुख नहीं भाई मीत..."
दूसरे के दुख को देखकर दुखी होना और दूसरे के सुख को देखकर सुखी होना ही सच्ची मानवता है...
सिख धर्म का उदय उस वक्त हुआ था, जब हिन्दू धर्म के अंदर पाखंड चरम पर था। सूफी संत और दरवेश जगह-जगह जाकर सहिष्णुता का पाठ पढ़ा रहे थे। आज ऐसे नज़ारे आम हैं, जब हम बहुत-से गोरी चमड़ी वालों को भी केश, कंघा, कड़ा और कृपाण धारण किए देखते हैं।
अगर बात सिख समुदाय की आती है, तो ऐसे लोगों का अक्स सामने आता है, जिन्होंने मेहनत से पहचान बनाई है। आज हिन्दुस्तान का कोई ऐसा शहर नहीं, दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं, जहां सिख मौजूद नहीं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में बताया गया है कि किस तरह मेहनत की कमाई खाकर जीना बेहतर है
सबसे अच्छी बात - हमने कभी किसी सिख को हाथ फैलाते नहीं देखा...
ऐसा आत्मसम्मान किसी भी कौम के लिए सबसे बड़े फख्र की बात है। एक-दूसरे की मदद करना सिख धर्म का संदेश है।
लेकिन भारत में ऐसे बहुत से राज्य हैं, जहां के नागरिक एक-दूसरे को नीच मानते हैं, जातिगत द्वेष बढ़ता जा रहा है, नेता हिंसा का तांडव करवा रहे हैं, हमारे नेता देश के भीतर कई देश बनाने के लिए आतुर दिख रहे हैं, सहनशीलता खत्म हो गई है, कोई किसी की मदद नहीं करना चाहता, बात-बात में हत्या, बात-बात में खून... इन परिस्थितियों में श्री गुरु ग्रंथ साहिब एक मिसाल का काम कर सकता है...
सुमित विर्क
सी.डी .एल .यु .जनसंचार विभाग

ये आजादी नही

आजादी के पहले हम अग्रेजों के गुलाम थे और आजादी के लिए लड़ने और मरने वालों ने सोचा था कि आजाद होने के बाद सब ठीक हो जाएगा परन्तु बिहार और इसके आसपास के लोगों की नियति गुलामी ही है। बिहार मे बाढ़ के अलावा क्या है। बिहारियों या यूपी वालों के पास कमाने के लिए नौकरी या मजदूरी ही एकमात्र विकल्प है आप भारत के किसी भी विकसित राज्यों में जाएंगे वहां ये लोग मजदूरी करते हुए ठेले पर कुछ बेचते हुए या रेलवे स्टेशन पर कुली के रूप में। इधर कुछ सालों से पढ़ाई में इन लोगों का रुझान बढ़ा है तो अच्छी नौकरियों में इन लोगों का अनुपात बढ़ा है अब बहुत लोगों को यह चीज खलने लगी है। ये कुलीगिरी और मजदूरी करने वाले सर्विस करेंगे तो फिर इन नीच समझे वाले कामों को कौन करेगा। इसलिए अब जब ये नौकरी के लिए परीक्षा देने जाते हैं तो कुछ सालों से इन्हें मारा या प्रताड़ित किया जा रहा है। महाराष्ट्र हो या आसाम हर जगह यह देखने को मिल रहा है और भारतवर्ष के शासक इसकी भर्त्सना कर चुप हो जाते हैं। यदि ऐसा ही हो्ता रहा तो भारतवर्ष के संघीय ढांचे पर प्रश्न उठने शुरू हो जाएंगे।क्या ये लोगॉं की किस्मत में गुलामी ही करना लिखा है? यहां के कितने लोग बड़े उद्योगपति या व्यवसायी बन पाए हैं। और छोटी-मोटी नौकरी करने से भी वंचित करने का प्रयास हो रहा है, वो कोइ उपकार नही कर रहा है। ये सभी प्रतियोगिता पास करके नौकरी करना चाह्ते हैं जहां सभी राज्यों के लोगों को बराबर का मौका मिलता है तो फिर इस संघीय ढांचे में रहने का क्या मतलब है
दुनिया वालो कुछ तो सीखो इन नन्हे बच्चो से