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Tuesday, December 1, 2009

संसद से गैरहाजिर नेता

आप ने सुना होगा कि कालेज व विश्वविद्यालय में अकसर विद्यार्थी कक्षाओं से बंक कर लेते हैं। विद्यार्थी जीवन में प्रत्येक ऐसा करता है। उस समय इसके हजारों कारण व बहाने हो सकते हैं पर आप यह जानकर हैरान होंगे कि आज हमारे नेता भी बंक मार रहे हैं। वह भी संसद में से पता नहीं उन्हें किस बात का डर है। देश की जनता अपने-अपने क्षेत्रों से सांसदों को विजयी बनाकर संसद भवन में भेजती है ताकि वह उसके मामलों को संसद में उठा सके। उसके हिस्से की लड़ाई लड़ सके परन्तु उन्हें क्या पता कि उनके साथ विश्वासघात हो रहा है। इन सांसदों का मुखय उद्देश्य केवल पावर व पैसा हासिल करना होता है तो वह क्यों जनता के हित के लिए संसद में बहस करे। ऐसा ही हुआ मंगलवार को जब संसद के महत्वपूर्ण सत्र प्रश्नकाल में से 31 सांसद गायब थे। इन 31 सासंदों में लगभग प्रत्येक राजनीतिक दल के नेता शामिल थे। हमें धन्यावाद करना चाहिए इलैक्ट्रानिक मीडिया का जो कि जनता को घर बैठे टीवी के माध्यम से संसद में चल रही कार्रवाई से रूबरू करवाती है। इसी प्रसारण के कारण ही सांसदों के क्षगड़े व तानाकशी वाला माहौल हम तक पहुंचता है। यही कारण था कि पूरे देश ने मनमोहन सरकार के पूनर्गठन के समय नोट उछालने की हरकत को देखा था। इसके अतिरिक्त हम चलती कार्रवाई में ही क्षपकी लेते हुए नेताओं को कई बार देख चुके हैं। यूपीए सुप्रीमो ने उन सभी सांसदों की सूची मांगी है जो कि उस समय संसद से नदारद थे। अब देखने वाली बात होगी कि क्या इन बिगड़े नेताओं के खिलाफ कार्रवाई होती है या नहीं। यहां एक बात और समक्षने वाली है कि प्रत्येक नेता को संसद में उपस्थित होने पर भत्ते के रूप में प्रतिदिन के हिसाब से 1000 रूपए मिलते हैं। यह रूपया कहीं और से नहीं बल्कि हमारी जेब से ही ''कर'' के रूप में जाता है। ऐसी हरकतें ही नेताओं के प्रति जनता के विश्वास को कमजोर करती हैं। उन्हें यह समक्षना चाहिए कि संसद हमारे देश का वह सर्वोच्च स्थान है जहां हर कोई पहुंचना चाहता है परन्तु प्रत्येक के लिए यह संभव नहीं है। अतः वे सांसद भाग्यशाली है कि उन्हें वहां पहुंचने का मौका मिला है। यहां से लगभग 100 अरब लोगों के लिए नीतियां व योजनाएं बनाई जाती हैं। अर्थात्‌ पूरे देश के भविष्य को संवारने की जिम्मेदारी उनकी है। यदि सांसद अपना कार्य करने में असमर्थ रहते हैं तो उन्हें सत्ता से बाहर करना आम जनता के लिए कठिन नहीं है क्योंकि उनके पास मत के रूप में वह शक्ति है जो किसी भी सांसद को संसद में पहुंचाने व बाहर निकालने का अधिकार रखती है।

आँखों में झलकती मासूमियत


चपन प्रत्येक शख्स की जिंदगी का वह हिस्सा होता है जिसे वह अपनी स्मृतियों कभी भी मिटा नहीं पाता। यह हमारे जीवन का वह शुरूआती समय होता है, जब हमें किसी की कोई परवाह नहीं होती, केवल मां बाप को ही हमारी परवाह होती है। उस समय हमारा ध्यान केवल शरारतों में ही होता है। मासूमियत व तोतली जुबान में कही गई बातें मां बाप के चेहरे पर रौनक ला देती है। बचपन में हमारी प्रत्येक जिद्द के सामने माता पिता को झुकना पड़ता है। कहते है कि इस आयु में हम भगवान के काफी नजदीक होते हैं क्योंकि उस समय हमारा मन कोरे कागज की तरह होता है परन्तु बड़े अफसोस की बात है कि ये बचपन के नजारे हर एक को नसीब नहीं होते। खासकर उस गरीब वर्ग के बच्चों को जिनका परिवार दिन के 20 रूपए भी नहीं कमा पाता। इन बच्चों की ख्वाहिशें पूरी होना तो दूर की बात है उन्हें भर पेट भोजन भी नसीब नहीं होता। हमारे देश में 64 प्रतिशत बच्चे गरीबी रेखा से नीचे जी रहे हैं न तो उनके पास खाने के लिए भोजन है और न ही सोने के लिए छत। उनके बारे में कोई क्यों नहीं सोच रहा ? सरकार का ध्यान तो केवल घोटाले करने या विरोधी दल को नीचा दिखाने की और ही रहता है। बच्चों पर लागू नीतियां बिल्कुल शून्य हैं। मौजूदा बजट का सच है कि प्रत्येक वर्ष प्रति बच्चा औसतन 150 रू खर्च करने की सरकार की नीति है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि बच्चों के प्रति उसकी सोच कैसी है। बच्चों के विकास के नाम पर वर्ल्ड बैंक से लिए गए पैसे का इस्तेमाल अगर नेता अपनी अय्याशी के लिए करते तो स्पष्ट है कि उनका नजरिया इन मासूमों के लिए क्या है? एक अन्य आइएफपीआरआई की रिपोर्ट के अनुसार कुपोषण और बाल मृत्यु दर में भारत 66वें संस्थान के साथ बंग्लादेश से भी नीचे है। जरा बताइए इससे बड़ी कोई शर्म की बात हो सकती है। देश में मासूमों की जिंदगी से यहां सरकार सरासर धोखे कर रही है। वहीं देश में बढ़ रही बाल मजदूरों की दर स्पष्ट कर देती है कि समाज का नजरिया इनके लिए कैसा है, वह समाज जो बातों-बातों में बच्चों की सहानुभूति लेने से नहीं चूकता। यह किसी से छुपा नहीं है कि हमारे चारों तरफ ढाबों, होटलों, इमारतों के निर्माण स्थलों यहां तक की हमारे घरों में भी कम आयु के बच्चों से काम करवाया जा रहा है। जो आयु उनकी पढ़ने या हम उम्र साथियों के साथ खेलने की होती है उस आयु में उनसे जी तोड़ मजदूरी करवाई जा रही है। ये कहां का न्याय है कि आपका बच्चा स्कूल जाता है और वह मासूम आँखें केवल उसे निहारती रहती है। वे तो केवल महसूस करते हैं,अपने आप से सवाल करते हैं कि काश हमारा जन्म भी अच्छे परिवार में हुआ होता। उनके सपनों को समझने की ताकत हमें क्यों नही मिल पा रही? क्यों हम सब कुछ देखते समझते हुए भी कुछ नही कर पा रहे? कहां है हमारे अंदर का वो इंसान जो किसी की आँखों में आँसू नही देखना चाहता। हमें उन लाचार आँखों के सपनों को समझना होगा। अगर हम इनके प्रति अपने कर्त्तव्यों को समझ जाएं तो उनके जीवन में खुशियां लाई जा सकती हैं। वरना बेचारगी व लाचारी से भरा इनका जीवन ही कई बार मजबूरन उन्हें जुर्म की दुनिया में ले जाता है। फिर उनका हर एक कदम इस गंदगी की दलदल में और अधिक गहरा धंसता जाता है कि वहां से वापसी कर पाना उनके लिए असंभव हो जाता है। इसी का फायदा बड़े-बड़े आतंकवादी संगठन या आपराधिक गिरोह उठाते हैं। इन मासूमों को पैसे का लालच देकर अपने नापाक इरादों को पूरा करते हैं। जो बाद में हमारी पूरी मानवता के लिए खतरा बन जाते हैं। अतः समय रहते अगर उचित कदम न उठाए गए तो न जाने कितने और कसाब,लखवी पैदा हो जाएंगें जिनको रोक पाना हमारे लिए बहुत कठिन होगा।