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Friday, January 23, 2009

खामोश पन्ने



मैं खामोश हूँ , नर्जीव हूँ, पर मेरे अन्दर जो शक्ति है ,शायद व् किसी में नही, आज मानव इतना व्यस्त हो चुका है, की उसके पास किसी के लिए समय नही वह इस भागदौड वाली जिंदगी में खो चुका है, परन्तु यह मेरा सोभाग्य है, की सुबह -सुबह चाय की चुस्कियों के साथ कोई भी मुझे पड़ना नही भूलता, चाहे व् बस टाइम पास के लिए हो ,लकिन व् कुछ ग्रहण किए बिना नही रह सकता
मैं ज्ञान से भरपूर हूँ , परन्तु फ़िर भी कुछ लोग ऐसे है ,जो मुझे व्यर्थ मानते है जो बार- मेरा होंसला व् विश्वाश तोड़ने की कोशिश करते है क्योंकि वे इस आधुनिकता के युग में टीवी व् इन्टरनेट जैसे नए साधनों के शिकार हो चुके इन खामोश पन्नों की अहमियत भूल चुके है, वे भूल चुके है कि सभी संचार माध्यमों का आधार में ही हूँ प्राचीन समय में सूचनाओं और संदेशो को लिखित रूप में ही आपस में बांटा जाता था क्या हो गया अगर मानव ने संचार के नए साधनों का विकास कर लिया है शायद मेरी कमजोरी यह रही कि में अपने आप में चाहते हुए भी वह परिवर्तन कर सकी जो समय के साथ करने जरुरी थे
कभी -कभी मेरे मन में विचार आता है ,कि मैं बोल क्यो नही सकती अगर बोल सकती होती तो चिला- कर लोगों को अपना दर्द बता देती फ़िर सोचती हूँ ,शायद यह खामोशी ही मेरी ताकत है क्या हुआ अगर मेरे पास आधुनिक युग के हथियार चलचित्र व् आवाज़ नही ,मेरे पास रंगों व् शब्दों कि वह खूबियाँ है, जो मेरे रूप को निखारती है
कभी-कभी मैं अपना अंत नजदीक देखती हूँ, फ़िर कुछ ऐसे लोग मेरे लडखडाते हुय कदमों को संभालते है कि मैं फ़िर चलने लगती हूँ इन अच्छे व् ज्ञानी लोगों के बारे मैं सोचते हुए खुश हो जाती हूँ ,चलो कोई तो है जो मेरी महत्वता को समझता है
इसी उधेड बुन मैं फंसे- सोचती हूँ ,अब मैं अपने क़दमों को लड़खडाने नही दूंगी , मैं समय का मुकाबला करूगीं ,उन लोगो कि ताकत बनुगी जिनकी कलम के ब्ल्भुते मैं चलती हूँ वह मुझे अपना सब कुछ मानते हैं ऐसे लोगों का मैं सत् -सत् प्रणाम करती हूँ

सुमीत विर्क