त्रता के बाद से ही गरीबी को मिटाने की कवायद शुरू हो गई थी। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू गरीबी व कृषि को देश के विकास का आधार मानते थे। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पंचवर्षीय योजनाओं की शुरूआत उन्होंने 1951 में की थी। अब तक लगभग 11 पंचवर्षीय योजनाएं आ चुकी हैं परन्तु कुछ क्षेत्रों को छोड़कर इनका कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। प्रत्येक वर्ष बढ़ रही किसानों की आत्महत्याएं साफ दर्शाती हैं कि इस वर्ग की कितनी अनदेखी की जा रही है। सिंचाई के साधनों की कमी के चलते उसे बिल्कुल इन्द्र देव पर निर्भर रहना पड़ता है जो अपनी मर्जी से बरसते हैं। दूसरी ओर न तो उन्हें उच्च क्वालिटी का बीज दिया जाता है और न ही फसल का उचित मूल्य। व्यापारियों और सरकार की साठ गांठ ऊपर की ऊपर ही हो जाती है। किसान बेचारा हाथ मलता ही रह जाता है। ऐसे में बताईए वो बेचारा करे तो क्या करे। चुनावों के समय सरकारें बस कुछ समय के लिए क्षूठे आश्वासन देती हैं। समय बीतते ही उन आश्वासनों की पोल खुल जाती है। सरकार की नीतियों से तंग आकर समय समय पर प्रदर्शन होते रहे हैं परन्तु सरकार के कानों पर जूं नही रेंगती। अब उत्तरप्रदेश के किसान गन्ने की कीमतों को लेकर दिल्ली पहुंच चुके हैं। उनके प्रदर्शन से पूरा दिल्ली थम गया। विपक्षी दलों ने संसद
में हंगामा कर कार्रवाई को आगे नहीं बढ़ने दिया। यह किसान पिछले एक महीने से आंदोलनरत हैं। इस बार भी प्र्र्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आपातकालीन बैठक बुलाकर किसानों के गुस्से को शांत कर दिया परंतु यह समय ही बताएगा कि किए गए वादे कितने सच होते हैं। वहीं पंजाब और हरियाणा के किसान भी फसलों की कीमतों से खासे नाराज हैं क्योंकि महंगाई के बढ़ने की रफ्तार के हिसाब से उन्हें फसलों का मूल्य नही मिल पा रहा। वहीं महंगाई के नाम पर देश के कृषि व वित्त मंत्री का इस तरह पल्ला क्षाड़ लेना भी निराश करता है। अतः किसानों की इस मजबूरी का गलत फायदा उठाने कि बजाए सरकार को इस वर्ग की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि देश का अन्नदाता कर्ज के दबाव में आकर अपना जीवन समाप्त न करें। वहीं पूंजीवर्ग को भी समक्षना चाहिए कि उसका व उसके परिवार का पेट भी इसी किसान द्वारा पैदा किए गए अनाज से ही भरता है। बहुमंजिला व वातानुकुलित घरों में बैठकर हमें उनका भी ध्यान रखना चाहिए कि जो कड़कती ठंड व तपती धूप में नंगे पांव व नंगे बदन खेतों में मेहनत करते हैं ताकि देश में कोई भी भूखा न सोए। उसका खुद का परिवार चाहे भूखा हो वह दूसरे की भूख नहीं देख सकते। अरे समय की अंधी व गूंगी सरकारों जरा इस शूरवीर की तरफ भी ध्यान दीजिए।