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Thursday, November 26, 2009

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आसमांं छूती भारतीय नारी

महिला हमेशा से परिवार समाज की सूत्रधार रही है। इसमें वह शक्ति है जो दुर्गा महारानी लक्ष्मीबाई के रूप में शत्रु के दांत खट्टे कर सकती है और सीता के रूप में पति के लिए अग्नि परीक्षा भी दे सकती है। मदर टैरेसा के रूप में समाज सेवा कल्पना चावला के रूप में आसमान भी जीत सकती है। ऐसी अनेकों चुनौतियों का सामना करना उसे बखूबी आता है। समय की चुनौतियों से जूक्षने के कारण ही वह हर रोज नए आयाम स्थापित कर रही है। इस तरह ऊंचाईयों को छूते हुए वह हमें कह रही है कि वह समय गुजर चुका है जब औरत को केवल घर की चारदीवारी में कैद रहना पडता था। अब वह रुकने वाली नहीं है। आज वह हर क्षेत्र में पुरूषों को चुनौती दे रही है। जिस तेजी से प्रगति कर रही है लगता है कि जल्द ही वह भारतीय समाज में व्याप्त पुरूषों के वर्चस्व को तोड़ कर मीलों की दूरी स्थापित कर लेगी। उस समय हमारे लिए उसको को पकड पाना बहुत मुश्किल होगा। कभी-कभी सोचता हूं कि क्या ये वो ही नारी है जो पहले सती प्रथा फिर दहेज प्रथा तथा वर्तमान में भ्रूण हत्या कि बली चढ़ती रही है। हर बार उसने अपने वजूद की लड़ाई स्वयं लड़ी है। शायद ये मुसीबतें ही थी जो उसे और अधिक मजबूती प्रदान करती रही, उसे और अधिक जोश दृढ़ता से आगे बढ़ने का हौंसला देती रही। इस बार जब 15 वीं लोकसभा का गठन हुआ तो मीरा कुमार ने पहली भारतीय महिला स्पीकर बन कर नया इतिहास रच दिया। उनकी सफलता की मुखय बात थी कि उनका संबंध उत्तर प्रदेश के एक दलित परिवार से है। वहीं वर्तमान राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल ने भी भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति होने का गौरव प्राप्त किया है। अभी उन्होंने एक और नया कीर्तिमान स्थापित किया है। उन्होंने जब लड़ाकू विमान सुखोई 30 में उड़ान भरी तो वह विश्व की प्रथम महिला राष्ट्रपति बन गई जिसने सेना के जहाज में उड़ान भरी हो। इस सफलता के साथ ही उन्होंने साबित कर दिया कि महिलाओं का हौंसला आसमान से भी ऊंचा है। हम वो सभी काम कर सकती हैं जो अब तक केवल पुरूष करते आए हैं। साथ ही उन्होंने यह संदेश भी दिया कि आज 21वीं सदी में भी जो हम महिलाओं को कम आंकता है वह सबसे बड़ा मूर्ख है। साथ ही उन परिवारों को भी सार्थक संदेश दिया जो लडकियों को उच्च शिक्षा दिलाने से कतराते हैं। अब हमें समक्ष जाना चाहिए कि नारी को दबा कर नहीं रखा जा सकता। वह अपने लिए खुद मार्ग ढूंढ़ सकती है। वह समाज और देश के लिए अच्छी मार्गदर्शक बन सकती है। उसे रोकने कि बजाए साथ लेकर चलने से ही समाज का विकास संभव है। परन्तु इन सब उपलब्धियों के चलते उसे अति उत्साही होने की भी जरूरत नहीं। उसे अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों बेटी, पत्नी मां आदि के फर्ज को भी भूलना नहीं होगा। इसके साथ-साथ उसे हमारी संस्कृति संस्कारों को भी मन से विसारना नहीं जो अब तक उसे सर्वश्रेष्ठ पवित्र बनाते रहे हैं।