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Tuesday, November 25, 2008

टी आर पी के पीछे भागते न्यूज चैंनल






21 वी सदी के साथ भारत में अनेकों टी वी चैंनलों का आगमन हुआ। इनमें बहुत बढी संख्या न्यूज चैंनलो की थी। दूदर्शन के एकाधिकार का समय गुजर चुका था। प्रतियोगिता बढ़ जाने के कारण प्रत्येक चैनल एक दूसरे को पीछे छोडने की होड़ में लगे हुए है। इस होड़ में वह अपनी दिखाई जाने वाली सामाग्री पर अधिक ध्यान नही दे रहे है। वह दर्शकों को अश्लीलता व हिंसा अधिक परोस रहे हैं। ऐसे में समाज पर जो बुरा प्रभाव पड़ रहा है,उसकी तरफ किसी का भी ध्यान नही है। वे तो मस्त है,पैसे की माया में। उनको सिर्फ पैसे से मतलब है,जनता जाए भाड़ में। समाज का सबसे अधिक समझदार वर्ग ही अगर अपने दायित्त्व को नही समझेगा, तो समाज की दिशा कैसी होगी,ये आप जानते ही है। समाज को सही रास्ता देने की जगह, पथ भ्रष्ट करना सही नीति नही हैं। ये जरूर है कि आज के समय में प्रत्येक कर्मचारी को अधिक वेतन देना पड़ता है। ऐसे में अधिक लाभ कमाना उनकी मजबूरी बन चुकी है। परंतु अपनी मजबूरी के लिए जनता को पथ भ्रष्ट करना सही नही है। क्या सूचना देने का यही सही तरीका है ? क्या इस नीति में कुछ परिवर्तन नही किए जा सकते ? ऐसी कोई समस्या नही जिसका हल ना किया जा सके। जरुरत है, सभी चैंनल मिलकर इस समस्या का हल करे, क्योंकि अगर सरकार कड़े कदम उठाएगी तो मीड़िया की स्वतंत्रता पर सवाल उठेंगे । अतः समय रहते ही सोच विचार करना सही होगा
सुमीत विर्क
सी.डी .एल.यू.जनसंचार विभाग सिरसा

Wednesday, November 19, 2008

जरा सोचिये

अपने विचारो पर ध्यान दीजिए,
ये आपके शब्द बन जाते हैं।
अपने शब्दो पर ध्यान दीजिए,
ये आपके एक्शन बन जाते हैं।
अपने एक्शन पर ध्यान दीजिए,
ये आपकी आदत बन जाती हैं।
अपनी आदतों पर ध्यान दीजिए,
ये आपके चरित्र बन जाता है।
अपने चरित्र पर ध्यान दीजिए,
ये आपके कर्म बन जाते हैं।
सुमित विर्क।

Tuesday, November 11, 2008

नए युग का टीवी

टीवी इतिहास में एक नई क्रांति आ चुकी है। आज टीवी की पहुंच प्रत्येक घर तक हो चुकी है। इसी बीच नए-नए चेंनेलो का आगमन हुआ है। इन चेंनेलो में प्रत्येक विषय के जैसे मनोरजन,खेल,न्यूज़,सेहत व धार्मिक चैनल है। आज हमारे देश का प्रत्येक वर्ग इस क्रांति से प्रभावित हो रहा है। प्रत्येक वर्ग अपनी पसंद का चेंनेल देख सकता है। अर्थात वह समय गुजर चुका है ,जब दर्शको को केवल एकमात्र सरकारी चेंनेल दूरदर्शन पर निर्भर रहना पड़ता था।
इस नई क्रांति ने हमारे जीवन में बहुत परिवर्तन ला दिया है। अब लोग अधिकतर समय टीवी देखने में गुजारते है। इससे उन्हें घर बैठे दूर-दूर की जानकारिया आसानी से प्राप्त हो जाती है,उनके ज्ञान में वृदि होती है। टीवी ने लोगो के बीच की दूरिया समाप्त कर दी है।

Friday, November 7, 2008

दिलो में बढती दूरिया

आज के इस तकनीकी युग ने हमारे रहन सहन पर बहुत बुरा प्रभाव डाला है। मशीनों ने व्यक्ति को अपने आप तक सीमित कर दिया है। वह दूसरो से मिलना व् बात करना बिल्कुल पसंद नही करता। वह अपने दुःख -सुख किसी के साथ नही बाँट पाता,जिससे वह डिप्रेशन जैसी अनेक बीमारियो का शिकार हो रहा है। ऐसा केवल शहरों में ही नही गाँवों में भी हो रहा है। कम्पुटर व् इन्टरनेट जैसे साधनों की पहुँच गाँवों तक हो गई है। गाँवों का वह माहोल जिसमें लोग इकठ्ठे होकर चोपालों में बैठते थे,ताश व् इधर उधर की बाते कर मनोरजन करते थे।परन्तु आज के समय में ऐसा बिल्कुल नही देखा जा सकता।
इस तरह आपस में दुःख-सुख न बाँटने से लोगो के दिलो में दूरियां बढ रही हैं। सामाजिक रिश्तों में गिरावट आ रही है। पति -पत्नी ,भाई-भाई आदि नजदीकी रिश्तों में तनाव इस तकनीकी युग की ही देन हैं। क्या इन रिश्तों में पहले की तरह प्यार को नही बढाया जा सकता। क्या हम दुसरो से बातें करने का समय नही निकाल सकते। जरुरत है इस तकनीकी युग से निकलकर रिश्तों की अहमियत समझने की। अगर समय रहते हमने इस तरफ़ नही सोचा तो ,वो दिन दूर नही जब हम अकेलेपन में जीने को मजबूर हो जायगें। यह अकेलापन ही हमारे समाज के पतन का कारण बनेगा। इस सामाजिक पतन व् इन प्यारे रिश्तों को बचाना हमारा फर्ज है। आओ मिलकर इस समस्या से निजात पाएं।


सुमित विर्क

Wednesday, November 5, 2008

बहुत याद आओगे तुम




क्रिकेट इतिहास में कई खिलाड़ी आय और चले गये। परन्तु कुछ खिलाडियो की ऐसी यादे क्रिकेट के साथ जुड़ जाती है ,जिन्हें भुला पाना बहुत मुश्किल होता है।इन्ही खिलाडियों में से एक थे सौरव गांगुली। उन्हें दादा और महाराज के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने भारतीय क्रिकेट को एक नई राह दिखाने में बहुत अहम भूमिका निभाई थी। सन १९९९ में मैच फिक्सिंग का साया भारतीय क्रिकेट पर पड़ा । जिसके कारण कई अहम खिलाड़ी जैसे अजरुदीन,मोंगिया व् जडेजा को दोषी पाया जाने पर टीम से बाहर कर दिया गया । ऐसे समय में टीम को एकजुट करने का काम गांगुली ने किया था । टीम को जितना सिखाने वाले भी वही थे ,इसलिय वे भारत के सबसे सफल कप्तान में सबसे ऊपर थे । आज भी क्रिकेट इतिहास में उन लम्हों को याद किया जाता है जब गांगुली ने चैम्पियन ट्राफी में टी -शर्ट गुमाई थी।

Tuesday, November 4, 2008

महान ग्रन्थ है गुरु ग्रन्थ साहिब



सचखंड
साहिब श्री हज़ूर साहिब महाराष्ट्र में इस हफ्ते लाखों का जनसैलाब इकट्ठा हुआ। श्री गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु की गद्दी पर बिराजे 300 साल हो गए। दरअसल यह दुनिया का ऐसा अनोखा धर्म ग्रंथ है, जिसे गुरु की पदवी दी गई है। पिछले 300 साल में इसकी पहुंच सिखों में ही नहीं, बाकी मज़हबों के लोगों में भी बढ़ी है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब को समूची मानव जाति का साझा ग्रंथ कहा जाता है, जिसे पढ़ने का अधिकार सभी धर्मों और जातियों के लोगों को हासिल है।
संत कबीर जुलाहा थे, नामदेव कपड़ों पर छपाई का काम करते थे, संत रविदास जूता सीते थे, त्रिलोचन एक ब्राह्मण थे, धन्ना खेतिहर थे, सूरदास अंधे थे, जयदेव हिन्दी कवि थे, बाबा शेख फरीद बड़े सूफी संत रहे हैं, जिनकी शान आज भी उसी तरह बरकरार है... अपने ज़माने के सारे नामी संतों और विचारकों की वाणी को गुरु ग्रंथ साहिब में तरजीह दी गई। यही एक वजह है कि इस ग्रंथ को लाखों गैर सिख भी उतनी ही श्रद्धा के साथ पलक-पांवड़ों पर बिठाते हैं।
ज़ाहिर है, गुरु ग्रंथ साहिब के सामने नतमस्तक होने के लिए आपका सिख होना ज़रूरी नहीं... आप अगर इस महान ग्रंथ के सामने मत्था टेकते हैं तो आप पूरे हिन्दुस्तान की साझी विरासत, साझी सोच को नमन करते हैं, जिसमें 30 संतों और 10 गुरुओं की वाणी का सार समाहित है। सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें किसी गुरु की महिमा का बखान नहीं है, बल्कि ईश्वर के नाम का सिमरन करने, सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों को कायम रखने और जनसेवा करने का संदेश है।
गुरुद्वारे में जो शबद पाठ हम सुनते हैं, वह इतना सुरमयी इसलिए है, क्योंकि यह पूरी तरह से हिन्दुस्तानी संगीत के अलग-अलग सुरों में ढला हुआ है, और हरेक वेला के हिसाब से श्लोक पाठ भी होता है, जो पूरी तरह तय होता है। आध्यात्मिक दर्शन के अलावा सामाजिक परिदृश्य में भी गुरु ग्रंथ साहिब ऐसी रोशनी का काम करता है, जिसकी मिसाल बहुत कम देखने को मिलती है। आज सरबत का भला कोई नहीं सोचता, कोई भला कैसे किसी दीन-हीन को देखकर आंखें फेर सकता है।
"पर का बुरा ना राखउ चीत,"तुम कउ दुख नहीं भाई मीत..."
दूसरे के दुख को देखकर दुखी होना और दूसरे के सुख को देखकर सुखी होना ही सच्ची मानवता है...
सिख धर्म का उदय उस वक्त हुआ था, जब हिन्दू धर्म के अंदर पाखंड चरम पर था। सूफी संत और दरवेश जगह-जगह जाकर सहिष्णुता का पाठ पढ़ा रहे थे। आज ऐसे नज़ारे आम हैं, जब हम बहुत-से गोरी चमड़ी वालों को भी केश, कंघा, कड़ा और कृपाण धारण किए देखते हैं।
अगर बात सिख समुदाय की आती है, तो ऐसे लोगों का अक्स सामने आता है, जिन्होंने मेहनत से पहचान बनाई है। आज हिन्दुस्तान का कोई ऐसा शहर नहीं, दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं, जहां सिख मौजूद नहीं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में बताया गया है कि किस तरह मेहनत की कमाई खाकर जीना बेहतर है
सबसे अच्छी बात - हमने कभी किसी सिख को हाथ फैलाते नहीं देखा...
ऐसा आत्मसम्मान किसी भी कौम के लिए सबसे बड़े फख्र की बात है। एक-दूसरे की मदद करना सिख धर्म का संदेश है।
लेकिन भारत में ऐसे बहुत से राज्य हैं, जहां के नागरिक एक-दूसरे को नीच मानते हैं, जातिगत द्वेष बढ़ता जा रहा है, नेता हिंसा का तांडव करवा रहे हैं, हमारे नेता देश के भीतर कई देश बनाने के लिए आतुर दिख रहे हैं, सहनशीलता खत्म हो गई है, कोई किसी की मदद नहीं करना चाहता, बात-बात में हत्या, बात-बात में खून... इन परिस्थितियों में श्री गुरु ग्रंथ साहिब एक मिसाल का काम कर सकता है...
सुमित विर्क
सी.डी .एल .यु .जनसंचार विभाग

ये आजादी नही

आजादी के पहले हम अग्रेजों के गुलाम थे और आजादी के लिए लड़ने और मरने वालों ने सोचा था कि आजाद होने के बाद सब ठीक हो जाएगा परन्तु बिहार और इसके आसपास के लोगों की नियति गुलामी ही है। बिहार मे बाढ़ के अलावा क्या है। बिहारियों या यूपी वालों के पास कमाने के लिए नौकरी या मजदूरी ही एकमात्र विकल्प है आप भारत के किसी भी विकसित राज्यों में जाएंगे वहां ये लोग मजदूरी करते हुए ठेले पर कुछ बेचते हुए या रेलवे स्टेशन पर कुली के रूप में। इधर कुछ सालों से पढ़ाई में इन लोगों का रुझान बढ़ा है तो अच्छी नौकरियों में इन लोगों का अनुपात बढ़ा है अब बहुत लोगों को यह चीज खलने लगी है। ये कुलीगिरी और मजदूरी करने वाले सर्विस करेंगे तो फिर इन नीच समझे वाले कामों को कौन करेगा। इसलिए अब जब ये नौकरी के लिए परीक्षा देने जाते हैं तो कुछ सालों से इन्हें मारा या प्रताड़ित किया जा रहा है। महाराष्ट्र हो या आसाम हर जगह यह देखने को मिल रहा है और भारतवर्ष के शासक इसकी भर्त्सना कर चुप हो जाते हैं। यदि ऐसा ही हो्ता रहा तो भारतवर्ष के संघीय ढांचे पर प्रश्न उठने शुरू हो जाएंगे।क्या ये लोगॉं की किस्मत में गुलामी ही करना लिखा है? यहां के कितने लोग बड़े उद्योगपति या व्यवसायी बन पाए हैं। और छोटी-मोटी नौकरी करने से भी वंचित करने का प्रयास हो रहा है, वो कोइ उपकार नही कर रहा है। ये सभी प्रतियोगिता पास करके नौकरी करना चाह्ते हैं जहां सभी राज्यों के लोगों को बराबर का मौका मिलता है तो फिर इस संघीय ढांचे में रहने का क्या मतलब है
दुनिया वालो कुछ तो सीखो इन नन्हे बच्चो से


Sunday, November 2, 2008

थम गया कुंबले का जादू /

कोटला टेस्ट के अन्तिम छनो में अनिल कुंबले का सन्यास लेना बहुत हेरानीजनक था /इस फैसले के साथ ही एक सुनहरे युग का अंत हो गया / १८ साल का लम्बा करियर उनके लिए काफी चुनोतिया लेकर आया ,परन्तु जम्बो ने उनका डटकर सामना किया /उन्होंने टेस्ट व् वनडे दोनों में कुल मिलाकर ९५६ विकेट लिए ,जो उनकी कामयाबी को साबित करते है /वो मैदान में काफी अग्रेसिव व् मैदान के बाहर काफी शांत व्यक्तित्व के मालिक थे /उन्हें इस बात का मलाल जरुर रहेगा की वह अपने अन्तिम टेस्ट में जीत प्राप्त नही कर पाय/

Friday, October 17, 2008

rajniti ka khel

rajniti kisi bhi loktantar ka adhar hoti hai.agar usme hi kamiya aa jaye to pure loktantar par iska bura parbhav padta hai.hamare desh mai rajniti ke disha bahut dayniye hai.neta apne savarth k liye dusro ke tange khichte rahte hai.na to v khud karti hai na kisi or ko karne dete hai.isse hamare desh k vikas me bahut badi samsya aa rahi hai.partayek rajnetik party hameshan dusri party ko apna nishana banati rahtihai.