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Wednesday, March 18, 2009

मंदी से बेखोफ चुनाव







मनमोहन सरकार का कार्यकाल खत्म होते ही , 15वी लोकसभा के गठन के लिए चुनावी बिगुल बज चुका है सभी प्रकार की सोचने पूरी की जा चुकी हैं। 16 अप्रैल से 7मई की तारीख निर्धारित कर दी गई है भारत के इन आम चुनावों को सबसे बड़े चुनाव कहना ग़लत नही है यह चुनाव दुनिया के अब तक के सबसे खर्चीले अमेरिकी चुनावों का रिकार्ड त्तोड़ने जा रहे हैं पिछले दिनों ओबामा को राष्ट्रपति बनाने के लिए बात चुनावों में आठ हजार है रुपए खर्च किए गए थे भारत में इस बार दस हजार सोचने रुपए खर्च किए जायेंगे

सेंट्रेल फॉर मीडिया स्टडीज की रिपोर्ट के अनुसार यह चुनाव पिछले आम चुनावों से दोगुने की होंगे पिछले चुनावों में खान चार हजार करोड रुपए खर्च किए गए थे खर्चे के अतरिक्त अन्य आंकडो के हिसाब से भी यह चुनाव सबसे आगे हैं इन चुनावों में लगभग इकहत्तर लाख इकतालीस हजार मतदाता , ग्यारह लाख वोटिंग मशीनों का प्रयोग 8,28,804 करोड मतदान केन्द्रों के लिए किया जाएगा

यहाँ दूसरी तरफ़ पूरा विश्व मंदी से परेशान है वही भारत के आम चुनाव इससे बिल्कुल खान है। इसका अर्थ है की हम आर्थिक रूप से पूरी तरह सशक्त है यहाँ यह भी सोचने वाली बात है , कि इतना पैसा आखिर आएगा कहाँ से कहीं यह आम आदमी का पैसा तो नही। क्योंकि एक तरफ़ हम मंदी का रोना रो रहे है। हजारों कि सख्या में लोगो को बेरोजगार किया जा रहा है, कंपनीयों द्वारा भारी घाटे का सबूत देकर। इससे तो सीधे तोर पर यह समझा जा सकता है कि चुनाव के नाम पर खर्च होने वाली राशिः का सीधा असर आम आदमी कि जेब पर पड़ेगा। में सरकार से सवाल पूछना चाहता हूँ क्या इस पैसे को जरुरत मंद लोगो पर नही खर्चा जा सकता। क्या सरकार को उनसे कोई मतलब नही , जिनके वोटों के बल पर सरकार का निर्माण होता है। क्या किसी के मुहं से रोटी का टुकडा छीनना मानवता है।