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Friday, November 7, 2008

दिलो में बढती दूरिया

आज के इस तकनीकी युग ने हमारे रहन सहन पर बहुत बुरा प्रभाव डाला है। मशीनों ने व्यक्ति को अपने आप तक सीमित कर दिया है। वह दूसरो से मिलना व् बात करना बिल्कुल पसंद नही करता। वह अपने दुःख -सुख किसी के साथ नही बाँट पाता,जिससे वह डिप्रेशन जैसी अनेक बीमारियो का शिकार हो रहा है। ऐसा केवल शहरों में ही नही गाँवों में भी हो रहा है। कम्पुटर व् इन्टरनेट जैसे साधनों की पहुँच गाँवों तक हो गई है। गाँवों का वह माहोल जिसमें लोग इकठ्ठे होकर चोपालों में बैठते थे,ताश व् इधर उधर की बाते कर मनोरजन करते थे।परन्तु आज के समय में ऐसा बिल्कुल नही देखा जा सकता।
इस तरह आपस में दुःख-सुख न बाँटने से लोगो के दिलो में दूरियां बढ रही हैं। सामाजिक रिश्तों में गिरावट आ रही है। पति -पत्नी ,भाई-भाई आदि नजदीकी रिश्तों में तनाव इस तकनीकी युग की ही देन हैं। क्या इन रिश्तों में पहले की तरह प्यार को नही बढाया जा सकता। क्या हम दुसरो से बातें करने का समय नही निकाल सकते। जरुरत है इस तकनीकी युग से निकलकर रिश्तों की अहमियत समझने की। अगर समय रहते हमने इस तरफ़ नही सोचा तो ,वो दिन दूर नही जब हम अकेलेपन में जीने को मजबूर हो जायगें। यह अकेलापन ही हमारे समाज के पतन का कारण बनेगा। इस सामाजिक पतन व् इन प्यारे रिश्तों को बचाना हमारा फर्ज है। आओ मिलकर इस समस्या से निजात पाएं।


सुमित विर्क