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Friday, December 4, 2009

प्रशासन बदले अपना रवैया..........


यह बात बिल्कुल सच है कि प्रत्येक व्यक्ति के जहन में पुलिस अफसर का रौबदार व खौफनाक चेहरा में होता है और ऐसा होना ठीक भी है क्योंकि यही खौफ ही है जो कहीं न कहीं अपराधी को अपराध करने से रोकता है। उसके बुरे कामों पर प्रतिबंध लगाता है तथा हमें आजाद व बेखौफ जिंदगी जीने का हक देता है। पुलिस का फर्ज है कि वह सुरक्षा को बनाए रखे। उनकी ड्यूटी बहुत सख्त होती है, कई बार उन्हें लगातार कई घंटे काम करना पड़ता है। देश में होने वाली सरकारी छुट्टियां पुलिस वालों के लिए नहीं होती। इसके साथ ही यह भी सच है कि पुलिस की छवि दिन प्रतिदिन जनता की नज+र में गिरती जा रही है। उसे रिश्वतखोर,समय पर न पहुंचने वाले तथा विशिष्ट लोगों के इशारे पर चलने वाला कहा जाता है। लोग अगर इन सुरक्षाकर्मियों को इस नजर से देखते हैं तो इसका कारण कोई और नहीं बल्कि वह खुद हैं। समय-समय पर समाचारपत्र व न्यूज चैनलों में ऐसी रिपोर्टों का प्रकाशन होता रहा है जिसके अंदर पुलिस का काला चेहरा सामने आता रहा है। महिलाओं के साथ बदसलूकी का व्यवहार तो कभी उनका रक्षक का भक्षक बन जाना ऐसी घटनाओं की तादाद कम होने की बजाए बढ़ती जा रही हैं। पिछले दिनों फर्जी मुठभेड़ के भी काफी मामले सामने आए हैं। यही अमानवीय घटनाएं है जो बदनामी के साथ-साथ प्रशासन पर आमजन के विश्वास को भी कम कर रही हैं। वैसे सभी अधिकारी ऐसे नहीं होते लेकिन फर्ज के लिए मर मिटने वाले अफसरों की संख्या देश में गिनी चुनी है। जो अधिकारी सच्चाई के रास्ते चलना चाहते हैं,उनके लिए चल पाना बहुत कठिन है क्योंकि उस क्षेत्र के पूंजीपति वर्ग से लेकर अपराधी वर्ग के मुखिया भी राजनीतिक दबाव बनाकर ऐसे सच्चे अफसरों का तबादला बार-बार करवाते रहते हैं। ऐसे अफसरों में प्रमुख नाम है किरण बेदी का जो पहली महिला पुलिस ऑफिसर थी जिनके कार्य करने के तरीकों की तारीफ आज भी होती है। उनके समय में जनता क्या, नेता क्या ऑफिसर तक सभी उनके नाम से कांपते थे। लोगों पर भी उनका खासा प्रभाव था क्योंकि वह हर व्यक्ति की समस्या बड़े ध्यान से सुनती थी। यही होना चाहिए पुलिस का चेहरा, लेकिन देश में हालात ऐसे हैं कि हर कोई पुलिस कार्यवाही से बचना चाहता हैं। फिर चाहे उसके साथ ज्यादति हो रही हो या उसे कोई महत्वपूर्ण सूचना देनी हो। पुलिस स्टेशन में इसलिए जाने से बचा जाता है कि उन्हें ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया जाएगा। इससे अच्छा है कि आराम से अपनी जिंदगी जी जाए। कुछ तो हमारे देश में पहले ही सामाजिक ढ़ांचा ऐसा है कि बचपन से ही हमारे दिमाग में पुलिस नाम का खौफ भर दिया जाता है और रही सही कसर ये खुद अपनी कार्यवाहियों से कर देते हैं। अतः सुरक्षाकर्मियों को चाहिए कि वह जनता के सेवादार के रूप में कार्य करे। अधिक से अधिक लोगों से जुड़कर उनके मामले सुलझाएं जाने चाहिए ताकि जनसमूह की सहानुभूति प्राप्त की जा सके। उसे अधिक संवेदनशील होना चाहिए। ऐसे सांझे कार्यक्रमों का आयोजन बडी संख्या में किया जाए जिनमें आम जनता व प्रशासन अधिकारी आमने सामने बैठकर बातचीत करें। उपरोक्त सभी कदम पुलिस की छवि बदलने में कारगार साबित हो सकते हैं।

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